नागा साधुओं की अनूठी दुनिया: चार प्रकार, चार कहानियां, कठोर तपस्या
Date: Jan 22, 2025
By: Nitika Srivastava, Bharatraftar
राजेश्वर नागा: तपस्या और राजयोग की चाह
राजेश्वर नागा साधुओं की दीक्षा प्रयाग के कुंभ मेले में होती है। ये साधु संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं और कठिन साधना में लीन रहते हैं।
खूनी नागा: उग्रता का प्रतीक
उज्जैन कुंभ में दीक्षित होने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है। ये अपने उग्र स्वभाव और क्रोध के लिए प्रसिद्ध हैं, जो इन्हें अन्य नागा साधुओं से अलग बनाता है।
बर्फानी नागा: शांति और धैर्य के प्रतीक
हरिद्वार में दीक्षित नागा साधु शांत स्वभाव के होते हैं। इन्हें बर्फानी नागा कहा जाता है और ये अपने धैर्य और शांति के लिए जाने जाते हैं।
खिचड़ी नागा: बदलते स्वभाव के धनी
नाशिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले खिचड़ी नागा साधुओं का कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता। वे कभी उग्र तो कभी शांत हो सकते हैं, जो उनकी पहचान को अद्वितीय बनाता है।
नागा साधु बनने की कठोर प्रक्रिया
नागा साधु बनने के लिए साधकों को कठिन साधना और संयम से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है।
नागा साधुओं का अंतिम संस्कार
नागा साधुओं को मृत्यु के बाद भू या जल समाधि दी जाती है। भस्म से उनका शरीर लेपित कर, भगवा वस्त्र ओढ़ा कर, विधि-विधान के साथ उन्हें समाधि दी जाती है।
जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा
13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जूना अखाड़ा है, जिसमें लगभग 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं। ये साधु धर्म की रक्षा और कठोर साधना के लिए समर्पित होते हैं, जो इन्हें भारतीय धार्मिक परंपरा का महत्वपूर्ण अंग बनाते हैं।
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