आखिर क्यों नहीं किया जाता मृत्यु के बाद दंडी संन्यासियों का अंतिम संस्कार ? जानें उनके जीवन और परंपराओं के 7 अहम पहलू
Date: Jan 23, 2025
By: Nitika Srivastava, Bharatraftar
कौन होते हैं दंडी संन्यासी?
दंडी संन्यासी हिंदू धर्म के वेदांत के ज्ञाता होते हैं और अद्वैत परंपरा से जुड़े होते हैं। इनका जीवन साधना, त्याग और संयम पर आधारित होता है।
दंडी का अर्थ और महत्व
‘दंडी’ शब्द दंड से लिया गया है, जो लकड़ी के पवित्र दंड का प्रतीक है। यह संयम और त्याग का प्रतीक माना जाता है और जीवनभर उनके साथ रहता है।
कौन बन सकता है दंडी संन्यासी?
केवल वही व्यक्ति दंडी संन्यासी बन सकता है, जो संसार की मोह-माया से मुक्त होकर ब्रह्म साधना का संकल्प लेता है। इसके लिए गुरू की अनुमति आवश्यक होती है।
जीवनशैली और नियम
दंडी संन्यासी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं। वे सात्विक भोजन करते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और अपनी साधना को पूरी तरह भगवान को समर्पित करते हैं।
भगवान को क्यों नहीं छूते?
दंडी संन्यासी अपनी साधना को इतना पवित्र मानते हैं कि उन्हें भगवान की प्रतिमा को छूने की आवश्यकता नहीं होती।
अंतिम संस्कार की परंपरा
दंडी संन्यासियों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता। उनकी देह को पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है, ताकि उनका साधना चक्र पूरा हो सके।
दशनामी परंपरा का हिस्सा
दंडी संन्यासी शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी परंपरा का अंग हैं। यह परंपरा वेदांत और ब्रह्म साधना के गहन रहस्यों पर आधारित है।
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