बिछिया कब बदलनी चाहिए? जानिए सुहाग की इस निशानी से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं, शुभ समय और जरूरी सावधानियां
शादी के बाद पहनी जाने वाली बिछिया सिर्फ गहना नहीं, बल्कि सुहाग का प्रतीक है। जानिए इसे कब और कैसे बदलना चाहिए, और किन बातों का रखना चाहिए ध्यान ताकि वैवाहिक जीवन बना रहे सुखमय।

भारतीय संस्कृति में बिछिया का स्थान केवल एक गहने तक सीमित नहीं है। यह एक विवाहित महिला की पहचान, उसकी आस्था और उसके दांपत्य जीवन की ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन अक्सर महिलाएं इस परंपरा से जुड़ी गहराई को नहीं समझतीं और बिना उचित जानकारी के टूटी, जंग लगी या पुरानी बिछिया पहनती रहती हैं — जो न केवल अशुभ मानी जाती है, बल्कि इसका असर उनके वैवाहिक जीवन पर भी पड़ सकता है।
बिछिया का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
बिछिया आमतौर पर चांदी की बनाई जाती है क्योंकि चांदी को धरती से जुड़ी ऊर्जा का संवाहक माना जाता है। यह ऊर्जा महिला के शरीर में प्रवेश कर गर्भाशय और प्रजनन तंत्र को संतुलित करती है। धार्मिक ग्रंथों में बिछिया को सतीत्व और अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
क्यों ज़रूरी है समय पर बिछिया बदलना?
जैसे-जैसे समय बीतता है, बिछिया घिस जाती है, टूट सकती है या उसका रंग बदल जाता है। ऐसी स्थिति में टूटी या फीकी बिछिया पहनना अशुभ होता है। यह ऊर्जा चक्र को प्रभावित करती है और परिवार में मानसिक असंतुलन व तनाव का कारण बन सकती है। यही वजह है कि समय रहते बिछिया को बदलना आवश्यक माना गया है।
बिछिया बदलने का सबसे शुभ समय
धार्मिक परंपराओं के अनुसार, सुबह स्नान के बाद माता गौरी के सामने बिछिया रखकर उनका आशीर्वाद लें।दोपहर 12 बजे से पहले नई बिछिया पहनें। पहनने के बाद घर के बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
किन दिनों में बदलना शुभ होता है?
हरियाली तीज, करवा चौथ, हरतालिका तीज, या पहले सावन का महीना
यदि बिछिया अचानक टूट जाए, तो अगला शुद्ध गुरुवार या शुक्रवार का दिन चुनें
बिछिया बदलते समय इन बातों का रखें विशेष ध्यान
संध्या या दोपहर के बाद बिछिया न बदलें
टूटी हुई बिछिया को न किसी को दें, न दोबारा पहनें
लोहे या मिश्रधातु की बिछिया पहनने से बचें — इससे ऊर्जा में बाधा आ सकती है