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अरेंज्ड और लव मैरिज नहीं, सनातन धर्म में बताए गए थे 8 विवाह! जानिए कौन-सा है सबसे श्रेष्ठ

सनातन धर्म में विवाह सिर्फ लव या अरेंज्ड नहीं होता था, बल्कि इसके 8 अलग-अलग प्रकार बताए गए हैं। जानिए कौन-सा विवाह क्यों था श्रेष्ठ और कौन-सा पूरी तरह निषिद्ध।

अरेंज्ड और लव मैरिज नहीं, सनातन धर्म में बताए गए थे 8 विवाह! जानिए कौन-सा है सबसे श्रेष्ठ

आज जब विवाह को लव मैरिज और अरेंज्ड मैरिज जैसे शब्दों में परिभाषित किया जाता है, वहीं सनातन संस्कृति में विवाह को एक आध्यात्मिक संस्कार माना गया है. ऐसा संस्कार जो केवल सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारियों का बंधन होता है।
जहां कई धर्मों में विवाह को एक कानूनी कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है, वहीं हिंदू धर्म में इसे अग्नि साक्षी मानकर निभाया जाता है, और यह 16 संस्कारों में से एक है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत और धर्मशास्त्रों में विवाह के 8 भिन्न प्रकारों का उल्लेख मिलता है? आइए जानें कि ये विवाह क्या हैं, और कौन-सा प्रकार श्रेष्ठ माना गया है।

1. ब्रह्म विवाह: ज्ञान और चरित्र पर आधारित बंधन
यह विवाह सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इसमें वर की विद्या और चरित्र को देख कर कन्या का विवाह किया जाता है। न कोई दहेज, न कोई शर्त केवल सद्गुणों पर आधारित निर्णय। यह आदर्श विवाह के रूप में प्रतिष्ठित है।

2. दैव विवाह: धार्मिक कर्म और आस्था का मेल
यह विवाह धार्मिक अनुष्ठानों में कन्या को यज्ञकर्ता ब्राह्मण को दान के रूप में विवाह हेतु समर्पित करने की परंपरा है। यह विवाह यज्ञ के माध्यम से ईश्वर को अर्पण के भाव से जुड़ा होता है।

3. आर्ष विवाह: ऋषियों के लिए विशिष्ट
इस विवाह में ऋषि कन्या के पिता को प्रतीक रूप में गाय-बैल की एक जोड़ी देते हैं। यह लेन-देन का प्रतीक नहीं, बल्कि कृतज्ञता का भाव है।

4. प्राजापत्य विवाह: समानता और धर्म पालन का उद्देश्य
यह विवाह उन युगलों के लिए होता है जो समान रूप से धर्म, समाज और संतान की जिम्मेदारी उठाने का निश्चय करते हैं। यह आज के "साझेदारी वाले विवाह" की आदर्श छवि है।

5. गंधर्व विवाह: प्रेम की अभिव्यक्ति, लेकिन परंपरा से दूर
यह वो विवाह है जो आपसी सहमति और प्रेम पर आधारित होता है। इसे समाजिक मान्यता कम मिलती थी, पर महाभारत में राजा दुष्यंत और शकुंतला का विवाह इसी श्रेणी में आता है।

6. असुर विवाह: लेन-देन का प्रतीक
इसमें वर वधू के परिवार को मूल्य देता है, जो आज के दहेज प्रथा जैसी व्यवस्था का प्रारंभिक रूप माना जा सकता है। यह विवाह नैतिक रूप से निम्न श्रेणी में आता है।

7. राक्षस विवाह: बलपूर्वक प्राप्त किया गया रिश्ता
युद्ध, बलप्रयोग और विजय के बाद विवाह। यह केवल क्षत्रियों के लिए अनुमत था। भीष्म द्वारा अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण इसी प्रकार का उदाहरण है।

8. पिशाच विवाह: छल, कपट और अंधकार का संगम
यह विवाह छल, नशा या जबरदस्ती से किया जाता है और पूरी तरह से निंदनीय और निषिद्ध माना गया है। धर्मशास्त्रों में इसे पाप की श्रेणी में रखा गया है।

कौन-से विवाह हैं श्रेष्ठ?
धर्मशास्त्रों के अनुसार पहले चार विवाह (ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य) को श्रेष्ठ, जबकि अंतिम दो (राक्षस और पिशाच) को अधम माना गया है।
यह विवाह के पीछे के उद्देश्य, विधि और नैतिकता पर आधारित वर्गीकरण है।