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जब श्रीकृष्ण चले गए... रुक्मिणी ने अग्नि को गले लगाया, अर्जुन का गांडीव भी रो पड़ा

Krishna wives after death: श्रीकृष्ण के देह त्याग के बाद रुक्मिणी और जाम्बवती ने सती होकर विदा ली, सत्यभामा ने तपस्या का मार्ग चुना, और अर्जुन असहाय हो गए। जानिए द्वारका के डूबने के बाद रानियों का क्या हुआ।

जब श्रीकृष्ण चले गए... रुक्मिणी ने अग्नि को गले लगाया, अर्जुन का गांडीव भी रो पड़ा
श्रीकृष्ण के देह त्याग के बाद रुक्मिणी का क्या हुआ...

जब श्रीकृष्ण ने इस धरती पर अपना कार्य पूर्ण कर वैकुंठ लौटने का निर्णय लिया, उस क्षण न केवल द्वारका की लहरों में उथल-पुथल हुई, बल्कि अनेक हृदय भी चुपचाप टूट गए। रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा और अन्य रानियां जो कृष्ण की सिर्फ पत्नियां नहीं, बल्कि उनकी आत्मा की साथी थीं उनके लिए यह विरह असहनीय था।

श्रीकृष्ण का अंतिम क्षण शांत था, लेकिन उसके बाद का दृश्य क्रंदन, पीड़ा और अनंत शून्यता से भरा था।

रुक्मिणी और जाम्बवती ने प्रेम की पराकाष्ठा पर जीवन होम किया
रुक्मिणी, जो कृष्ण को अपने हृदय का अधिष्ठाता मानती थीं, उनके जाने के बाद अपनी देह को अर्थहीन मान बैठीं। उन्होंने श्रीकृष्ण की चिता में प्रवेश कर आत्मसात कर लिया  यह कोई रस्म नहीं थी, यह था प्रेम का चरम।

जाम्बवती, जो श्रीराम के काल से जुड़ी आत्मा थीं, उन्होंने भी यही मार्ग चुना। दो नारियों ने प्रेम के उस स्वरूप को जी लिया जो देह और काल दोनों से परे होता है।

सत्यभामा का मौन विद्रोह: प्रेम को साधना में बदल दिया
सत्यभामा, जो हमेशा अपने स्वाभिमान और अधिकार के लिए जानी गईं, उन्होंने सती नहीं होकर एक दूसरा रास्ता चुना। उन्होंने वन को अपनी शरणस्थली बनाया और वहां तपस्या के माध्यम से अपने कृष्ण को पुनः पाने की साधना की।

उनका वियोग भी एक तरह का मिलन था — ध्यान में, आत्मा में, और आस्था में।

बलराम और रेवती का विदा होना, और अर्जुन की असहायता
बलराम ने समुद्र के किनारे योगबल से देह त्याग दिया और उनकी पत्नी रेवती ने उनके पीछे चलने में पल भी नहीं लगाया। द्वारका जैसे समय के साथ बहती नगरी थी, जो अंत में समुद्र में समा गई।

जब अर्जुन वहाँ पहुंचे, वे महाभारत के महानायक थे, लेकिन कृष्ण के बिना वह भी अकेले और कमजोर लगने लगे। रास्ते में लुटेरों ने स्त्रियों और धन को छीन लिया और अर्जुन, गांडीव हाथ में लिए, असहाय खड़े रह गए — क्योंकि अब वह दिव्यता साथ नहीं थी।