न कभी सुनी होगी, न कभी देखी होगी ऐसी होली...राजस्थान में खेली जाती है भारत की सबसे खतरनाक होली
Dangerous Holi of India: राजस्थान के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि साहस और परंपरा का त्योहार है। यहां धुलंडी के दिन लोग रंगों की जगह पत्थर बरसाते हैं और इसे शुभ माना जाता है। इस परंपरा को 'पत्थरों की राड़' कहा जाता है, जो 200 सालों से चली आ रही है। प्रतिभागी पत्थरों की बौछार में भी जोश और उत्साह से खेलते हैं। घायल होने पर भी वे विचलित नहीं होते, बल्कि इसे सौभाग्य का प्रतीक मानते हैं। जानिए इस अनोखी और रोमांचक होली परंपरा के बारे में।

होली का त्योहार रंगों, खुशियों और मेल-जोल का प्रतीक है, लेकिन राजस्थान के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में होली कुछ अलग ही अंदाज में खेली जाती है। यहां बरसाने की लट्ठमार होली से भी खतरनाक पत्थरमार होली खेली जाती है, जिसमें रंगों की जगह पत्थर बरसाए जाते हैं और खून बहना शुभ माना जाता है। यह परंपरा पिछले 200 वर्षों से चली आ रही है और हर साल धुलंडी के दिन इसे निभाया जाता है।
कैसे खेली जाती है पत्थरमार होली?
भीलूड़ा गांव में होली के दिन रघुनाथ मंदिर परिसर में सैकड़ों लोग इकट्ठा होते हैं। खेल शुरू होते ही ये लोग दो दलों में बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर पत्थर फेंकना शुरू कर देते हैं। प्रतिभागियों के पास ढालें होती हैं, जिनसे वे खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन अगर किसी को पत्थर लग जाए और खून बहने लगे, तो इसे शुभ संकेत माना जाता है। यह परंपरा उनके साहस, सहनशक्ति और सांस्कृतिक विश्वास को दर्शाती है।
खून बहने पर बढ़ता है जोश
इस खेल में शामिल लोग चोट लगने से विचलित नहीं होते, बल्कि इसे उत्साह के साथ स्वीकार करते हैं। घायल होने के बाद भी वे और जोश से इस परंपरा में हिस्सा लेते हैं। खेल के दौरान कई बार लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं, इसलिए प्रशासन की ओर से चिकित्सा टीम को तैनात किया जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जा सके।
आस्था, परंपरा और रोमांच का संगम
स्थानीय भाषा में इस अनूठी परंपरा को 'पत्थरों की राड़' कहा जाता है। गांववालों का मानना है कि इससे समाज में भाईचारा और एकता बढ़ती है। डूंगरपुर जिले के अन्य गांवों में भी अनोखी होली मनाई जाती है, जैसे देवल और जेठाना में गेर नृत्य और कोकापुर में होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलने की परंपरा। लेकिन भीलूड़ा की पत्थरमार होली अपने रोमांच और अनूठे रीति-रिवाज के कारण सबसे अलग मानी जाती है।
डूंगरपुर की यह परंपरा न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह दिखाती है कि भारत में होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि आस्था, परंपराओं और साहस का भी पर्व है।