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11 साल की सौम्या चौधरी ने थाईलैंड में रचा इतिहास, एशियन लॉन टेनिस टूर्नामेंट में जीता गोल्ड मेडल

11 साल की जयपुर की सौम्या चौधरी ने थाईलैंड में आयोजित AITF एशियन लॉन टेनिस टूर्नामेंट में चीन की खिलाड़ी के साथ मिलकर डबल्स में गोल्ड मेडल जीता। जानिए उनकी प्रेरक कहानी।

11 साल की सौम्या चौधरी ने थाईलैंड में रचा इतिहास, एशियन लॉन टेनिस टूर्नामेंट में जीता गोल्ड मेडल

राजस्थान की राजधानी जयपुर की 11 साल की सौम्या चौधरी ने वह कर दिखाया है, जिसका सपना बड़े-बड़े एथलीट देखते हैं। थाईलैंड में आयोजित एलटीएटी एशियन 14 एंड अंडर C2 (2) टूर्नामेंट में उन्होंने चीन की खिलाड़ी युफान ज्हेंग के साथ मिलकर डबल्स कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता है। यह टूर्नामेंट 10 मई 2025 से शुरू हुआ था और 16 मई को फाइनल मुकाबले के साथ समाप्त हुआ।

हर मुकाबले में दमदार प्रदर्शन, विरोधियों को दिखाया दम
क्वालीफाइंग राउंड में सौम्या और युफान की जोड़ी ने दो मैच जीतकर मुख्य ड्रॉ में प्रवेश किया। फिर क्वार्टरफाइनल में थाईलैंड की ए. संसुचत और उनकी जोड़ीदार को 6-2, 6-2 से हराया। इसके बाद सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया की ऐलिस कार्डोसी और थाईलैंड की विमुत्तिया पोंग्नू की जोड़ी को 7-5, 6-3 से हराकर फाइनल में जगह बनाई।

16 मई को हुए फाइनल मैच में सौम्या और युफान ने हांगकांग की युवेत वान और इंडोनेशिया की ओबरी कदीर की जोड़ी को 6-1, 6-4 से हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उनके इस प्रदर्शन से टेनिस की दुनिया में भारत का नाम एक बार फिर ऊंचा हुआ।

कौन हैं सौम्या चौधरी? छोटी उम्र, बड़े सपने
सौम्या चौधरी का जन्म 23 दिसंबर 2013 को जयपुर में हुआ था। उन्होंने सिर्फ 7 साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू किया, और तभी से उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। वह AITF की एशियन रैंकिंग में नंबर 2 खिलाड़ी हैं।

उनके कोच सुमित गुप्ता, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक हैं, ने उन्हें शुरुआती दौर से ही प्रोफेशनल टेनिस की ट्रेनिंग दी है। सौम्या ने अब तक कई नेशनल रैंकिंग टूर्नामेंट और सुपर सीरीज़ टूर्नामेंट में जीत दर्ज की है।

परिवार बना ताकत, स्कूल और कोच का सहयोग रहा अहम
सौम्या अपनी सफलता का श्रेय अपने स्कूल, कोच सुमित गुप्ता और अपने परिवार को देती हैं। उनके दादा श्री चंद चौधरी एक प्रतिष्ठित समाजसेवी और व्यवसायी हैं। पिता राहुल चौधरी और माता सुनीता चौधरी ने उनकी पढ़ाई और खेल दोनों में हमेशा साथ दिया।

उनके परिवार ने न सिर्फ उनकी प्रतिभा को पहचाना, बल्कि उन्हें सुविधाएं और प्रशिक्षण देकर उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। दादा-दादी की प्रेरणा और कोच की गाइडेंस से सौम्या ने टेनिस में ऐसी ऊंचाई छुई है जो इस उम्र में विरले ही कोई कर पाता है।