राजस्थान में जातिगत आंकड़ों की गूंज क्यों अहम, क्या अब बदलेगा सियासी गणित?
केंद्र सरकार ने पूरे देश में जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी है। जानिए इससे राजस्थान की राजनीति, आरक्षण व्यवस्था और जातीय समीकरणों पर क्या होगा असर।

केंद्र सरकार ने कैबिनेट की अहम बैठक में पूरे देश में जातिगत जनगणना कराने के फैसले पर मुहर लगा दी है। वर्षों से विपक्ष जिस मुद्दे पर आंदोलन कर रहा था, अब वही एजेंडा सत्ता पक्ष ने खुद अपने हाथ में ले लिया है। माना जा रहा है कि यह फैसला बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, लेकिन इसका असर केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा। राजस्थान जैसे राज्यों में, जहां जातीय समीकरणों की राजनीति दशकों से निर्णायक रही है, वहां यह कदम गहरे सियासी बदलाव की भूमिका बना सकता है।
राजस्थान में जातिगत आंकड़ों की गूंज क्यों अहम?
राजस्थान की राजनीति में ओबीसी वर्ग, खासकर जाट, माली, गुर्जर, मीणा और बिश्नोई समुदाय, सत्ता के संतुलन में निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं। जातिगत जनगणना के बाद यदि इन वर्गों की जनसंख्या के स्पष्ट आंकड़े सामने आते हैं, तो यह न केवल आरक्षण बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सरकारी योजनाओं में हिस्सेदारी की मांग को और तेज़ कर सकता है। जाट समुदाय, जो खुद को लंबे समय से सत्ता की दौड़ में हाशिए पर मानता रहा है, अब जनसंख्या अनुपात के आधार पर बड़ी हिस्सेदारी की मांग उठा सकता है।
इसी तरह, गुर्जर समुदाय का आरक्षण आंदोलन एक बार फिर गति पकड़ सकता है। मीणा समुदाय, जो पहले से ही अनुसूचित जनजाति वर्ग में आता है, संभव है कि आरक्षण लाभों के लिए नए सिरे से विरोध या समर्थन खड़ा करे।
SC/ST और आदिवासी समुदायों की नई रणनीति
मेघवाल, वाल्मीकि, गरासिया और भील जैसे समुदायों को जनसंख्या के आधार पर योजनाओं में पारदर्शिता और ज्यादा हिस्सेदारी की मांग करने का मौका मिलेगा। बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर जैसे क्षेत्रों में आदिवासी मुद्दे और मुखर हो सकते हैं।
भाजपा और कांग्रेस की रणनीतिक मजबूरी
इस फैसले के बाद बीजेपी को अपने पारंपरिक सवर्ण वोटबैंक को साधते हुए ओबीसी और दलित वर्ग में पैठ बनानी होगी। वहीं कांग्रेस के पास मौका है कि वह जातिगत आंकड़ों के आधार पर सामाजिक न्याय की नीतियों को री-ब्रांड करे। माली, विश्नोई और सैनी समुदाय के नेता अपने लिए अलग राजनीतिक मंच खड़ा करने की कोशिश कर सकते हैं।
जातिगत जनगणना- आरक्षण और समाज की दिशा
इस कदम से आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था पर बहस और तेज़ होगी। राजस्थान में पहले से ही आरक्षण की सीमा 50% से अधिक हो चुकी है। ऐसे में यदि किसी समुदाय की संख्या बहुत अधिक पाई जाती है, तो ईडब्ल्यूएस और ओबीसी उपवर्गीकरण को लेकर नई बहस की शुरुआत होगी।
आंदोलन की भूमि राजस्थान
राजस्थान में गुर्जर आंदोलन (2007-2019) के दौरान कई बार रेलवे ट्रैक तक जाम किए गए। जाट आंदोलन ने भी हरियाणा और यूपी के साथ राजस्थान में प्रभाव डाला। 2003 में बने सामाजिक न्याय मंच ने भी आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण समुदायों के लिए आवाज उठाई थी। ऐसे में जातिगत जनगणना की घोषणा इस आंदोलनकारी इतिहास को एक नई दिशा दे सकती है।