दो तरफा फंसे भजनलाल शर्मा, मीणा संग गुर्जर समाज भी नाराज ! अब क्या करेगी बीजेपी सरकार ?
राजस्थान में किरोड़ी लाल मीणा विवाद से बदले राजनीतिक समीकरण! क्या बीजेपी को गुर्जर और मीणा समुदाय की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा? जानें जातिगत समीकरणों का विश्लेषण।

जयपुर। राजस्थान की राजनीति में इन दिनों किरोड़ी लाल मीणा ने फोन टैपिंग और जासूसी का बम फोड़ा है। जिसकी धमक दिल्ली तक सुनाई दे रही है। केंद्रीय नेतृत्व के आदेश के बाद बाबा किरोड़ी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इस फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं हैं क्या सरकार या संगठन बाबा किरोड़ी पर बड़ा एक्शन ले सकता है, अगर हां तो इसका असर क्या होगा और आने वाले सालों में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। बता दें, भजनलाल सरकार को 13 महीने से ज्यादा वक्त भले बीत चुका हो लेकिन बीते कुछ महीने में कई नेता ने बगावती सुर अपनाएं हैं। जिमने बाबा किरोड़ी के अलावा विजय बैंसला का नाम भी शामिल है। दोनों राजस्थान बीजेपी के बड़े नेता हैं। ऐसे में पार्टी सोच-समझकर ही कार्रवाई करेगी।
मुश्किल में भजनलाल सरकार
बता दें, राजस्थान की राजनीति में जातिगत समीकरण बहुत मायने रखता है। अगर किसी समाज ने एक तरफा होकर वोट किया तो सरकारें गिर जाती हैं। चाहे गुर्जर समाज हो या फिर मीणा दोनों दी समुदाय कई सीटों पर खेल बनाने-बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। वसुंधरा राजे से लेकर अशोक गहलोत तक की सरकार भी इसी कारण से गई थी। ऐसे में भजनलाल सरकार के प्रति बढ़ती मीणा-गुर्जर समाज की नाराजगी पार्टी के लिए शुभ संकेत तो बिल्कुल भी नहीं है।
बीजेपी से नाराज गुर्जर सामाज !
किरोड़ी लाल मीणा से पहले विजय बैंसला कड़े तेवर पार्टी को दिखा चुके हैं। उन्होंने बयान दिया था, वह पार्टी द्वारा दिये राज्य मंत्री पद का आभार जताते हैं लेकिन अब वक्त इसे बढ़ाने का आ गया है। इस दौरान उन्होंने ये भी कहा था, गुर्जर समुदाय अभी पटरियों पर बैठना भूला नहीं है। जिसे चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है। अगर बैंसला बागी तेवर अपनाते हैं तो गुर्जर वोटों का छिटकना बिल्कुल तय है।
मीणा समाज भी बीजेपी से खुश नहीं !
इससे इतर किरोड़ी लाल मीणा सूबे की राजनीति में कद्दावर नेता माने जाते हैं। उनके बेबाक बोल और जमीनी संघर्ष का विपक्ष भी कायल है। पहले बाबा को सीएम पद न देना। फिर मंत्रिमंडल भी कोई खास विभाग उन्हें नहीं दिया गया। जबकि दौसा उपचुनाव में भाई की हार में उन्होंने भीतरघात का आरोप लगाया था। ऐसे में सियासी जानकार मानते हैं, पार्टी के लिए हमेशा खड़े रहने, बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने के बाद भी मीणा समाज के बड़े नेता की अनदेखी करना कही न कही बीजेपी को भारी पड़ सकता है।
जातिगत समीकरण कैसे साधेगी बीजेपी?
सत्ता में काबिज रहने के लिए जातिगत समीकरणों के बीच सुंतलन बनाना बेहद जरूरी है। हालांकि बीते एक साल में जिस तरह भजनलाल सरकार से तमाम वर्गों का नाराजगी सामने आई है वह पार्टी के चिंता का विषय है। खैर, देखना होगा इस चुनौत से भजनलाल सरकार के साथ आलाकमान कैसे निपटते हैं।