भील प्रदेश की मांग संसद में गूंजी, केंद्र सरकार को देना होगा लिखित जवाब

नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र में बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद राजकुमार रोत ने एक बार फिर भील प्रदेश राज्य के गठन की मांग को पूरे जोर से उठाया है। इस बार यह मुद्दा न सिर्फ़ सदन में गूंजा, बल्कि संसद भवन परिसर के मुख्य द्वार पर बैनर के साथ विरोध प्रदर्शन में भी दिखा। अब केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर लिखित जवाब देना होगा, जिससे यह मामला औपचारिक रूप से संसदीय रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है।
सांसद रोत ने कहा कि यह लड़ाई करोड़ों आदिवासियों की है और इसकी जड़ें 1913 के मानगढ़ नरसंहार से जुड़ी हुई हैं, जब गुरु गोविंद महाराज के नेतृत्व में 1500 से अधिक भीलों की शहादत हुई थी। रोत ने संसद में कहा कि इस बलिदान को इतिहास में भले भुला दिया गया हो, लेकिन आदिवासी समाज में आज भी "भील प्रदेश" की चिंगारी जिंदा है।
उन्होंने राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के उन क्षेत्रों को मिलाकर 43 जिलों को "भील प्रदेश" में शामिल करने की मांग की जहाँ आदिवासी बहुल जनसंख्या है।
इस बीच बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने इस मांग को 'प्रदेशद्रोह' करार देते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा कि "राजस्थान की एकता पर चोट" और "आदिवासी समाज के नाम पर भ्रम फैलाने की साजिश" कभी सफल नहीं होगी। उन्होंने सांसद रोत पर "सस्ती लोकप्रियता" पाने का आरोप भी लगाया।
भारतीय आदिवासी पार्टी लंबे समय से इस मांग को लेकर आंदोलनरत है। आदिवासी समाज का तर्क है कि उनकी संस्कृति, भाषा और जीवनशैली मुख्यधारा से भिन्न है और इसके संरक्षण के लिए एक अलग प्रशासनिक इकाई की आवश्यकता है। अब सबकी निगाहें केंद्र सरकार पर टिकी हैं — क्या भील प्रदेश को मान्यता मिलेगी? क्या भारत का नक्शा फिर से बदलेगा?