Budget 2025: इंडस्ट्री में Workweek को लेकर छिड़ी बहस, लेकिन आर्थिक सर्वे में निकल कर आई बड़ी बात ‘काम के घंटे बढ़े तो..
लंबे समय से काम के घंटों को बढ़ाने को लेकर पर बहस जोर पकड़े है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 इस बारे में कुछ और कहता है। जानिए-

आर्थिक सर्वेक्षण ने मानसिक स्वास्थ्य और उत्पादकता पर अत्यधिक काम के घंटों के हानिकारक प्रभाव के प्रति आगाह किया है। WHO और ILO के वैश्विक अध्ययनों का हवाला देते हुए, सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई है कि सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करने से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। जिसमें तनाव बढ़ना और कार्यस्थल में दक्षता में कमी शामिल है।
WHO और ILO के वैश्विक अध्ययनों का हवाला
जहां एक ओर लंबे समय तक काम के घंटों पर बहस जोर पकड़े है, वहीं आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने मानसिक स्वास्थ्य और उत्पादकता पर अत्यधिक काम के घंटों के हानिकारक प्रभाव के प्रति आगाह किया है। WHO और ILO के वैश्विक अध्ययनों का हवाला देते हुए सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई है कि सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करने से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें तनाव बढ़ना और कार्यस्थल की दक्षता में कमी शामिल है।
Workweek को 70-90 घंटे तक बढ़ाने के बारे में चल रही चर्चाओं के बीच, आर्थिक सर्वेक्षण ने काम के ज्यादा घंटों के नकारात्मक परिणामों को लेकर कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया है। रिपोर्ट WHO और ILO के अध्ययनों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर देती है कि-
• प्रति सप्ताह 55-60 घंटे से अधिक काम करने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
• डेस्क पर लंबे समय तक काम करना खराब मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। इसको इस तरह से समझ सकते हैं कि दिन में 12+ घंटे काम करने वाले व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण गिरावट का अनुभव होता है।
• वैश्विक स्तर पर अवसाद और चिंता के कारण प्रति वर्ष 12 बिलियन workday नष्ट हो जाते हैं, जिससे 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है।
क्या अधिक काम करना विकास की कुंजी है?
आर्थिक सर्वेक्षण के हवाले से यह रिपोर्ट तब सामने आई है जब लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के अध्यक्ष एस.एन. ने workweek को लेकर टिप्पणी की थी। सुब्रमण्यन ने 90 घंटे के workweek की वकालत करके विवाद को जन्म दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि कर्मचारियों को "घर पर बैठने" के बजाय रविवार को काम करना चाहिए। उन्होंने इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति की उस टिप्पणी का समर्थन किया था जिसमें उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए 70 घंटे के workweek की सिफारिश की थी।
हालांकि कई व्यापारिक लीडर्स ने इन विचारों का विरोध किया है:
• आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने विस्तारित कार्य घंटों को "सफलता नहीं, बल्कि थकावट का नुस्खा" कहा था।
• महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने जोर देकर कहा कि "काम की गुणवत्ता और उत्पादकता खर्च किए गए घंटों से अधिक मायने रखती है।"
• आईटीसी के अध्यक्ष संजीव पुरी ने तर्क दिया कि "कर्मचारियों को उनकी क्षमता हासिल करने के लिए सशक्त बनाना घंटों की गिनती करने से अधिक महत्वपूर्ण है।"
हालांकि आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए कम उम्र से ही जीवनशैली के लिए चुने गिए विकल्पों में सुधार पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए। बता दें कि जैसे-जैसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट 2025 पेश करने की तैयारी कर रही हैं, वैसे–वैसे work life balance, मेंटल हेल्थ और प्रोडक्टिविटी पर चर्चा पर महत्व बढ़ गया है। हालांकि इकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ाने पर प्राथमिकता बनी हुई है।