Rajasthan की जमीन पर Manmohan Singh की अंतिम पारी, एक चैम्बर, एक कुर्सी और एक कहानी, जो बयां करती है इतिहास का किस्सा
ये चैम्बर सिर्फ एक कमरे से ज्यादा है। ये पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के उन दिनों की गवाही देता है जब वे विकास अध्ययन संस्थान की गर्वनिंग काउंसिल के चेयरमैन थे। उनकी कुर्सी पर आज भी किसी ने बैठने की हिम्मत नहीं की।

जयपुर, गुलाबी नगरी का एक कोना, 20 वर्षों से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की यादों को सहेजे हुए है। झालाना स्थित विकास अध्ययन संस्थान में एक चैम्बर है, जो न केवल उनका कार्यक्षेत्र रहा बल्कि उनके व्यक्तित्व और आदर्शों की गहरी छाप छोड़ गया। ये चैम्बर आज भी वैसा ही है, जैसा 2004 में डॉ. सिंह ने इसे छोड़ा था। उनकी कुर्सी, नेमप्लेट और दीवार पर टंगी तस्वीर मानो एक समय यात्रा का प्रतीक बन चुकी है।
चैम्बर जो बोलता है किस्सा इतिहास का
ये चैम्बर सिर्फ एक कमरे से ज्यादा है। ये मनमोहन सिंह के उन दिनों की गवाही देता है जब वे विकास अध्ययन संस्थान की गर्वनिंग काउंसिल के चेयरमैन थे। उनकी कुर्सी पर आज भी किसी ने बैठने की हिम्मत नहीं की। चैम्बर में सबकुछ वैसा ही रखा गया है, जैसा उन्होंने छोड़ा था। ये चैम्बर एक तरह से उनके सादगीपूर्ण लेकिन प्रभावशाली नेतृत्व का प्रतीक बन चुका है।
सहजता की मिसाल: मनमोहन सिंह
डॉ. सिंह के साथ काम कर चुके डॉ. मोतीलाल महा मल्लिक बताते हैं कि उनका स्वभाव इतना सरल और सहज था कि वे पियॉन से भी उतनी ही आत्मीयता से बात करते थे जितनी किसी अधिकारी से। उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो हर किसी को अपना बना लेता। उन्होंने कभी अपने पद का अहंकार नहीं दिखाया। यही कारण है कि उनके साथ काम करने वाले आज भी उन्हें याद करते हुए भावुक हो जाते हैं।
चैम्बर जो समर्पित रहेगा सिंह को
उनके निधन के बाद ये चैम्बर अब हमेशा के लिए उन्हें समर्पित कर दिया गया है। 20 वर्षों तक किसी अन्य चेयरमैन को ये चैम्बर नहीं दिया गया। ये फैसला न केवल उनके योगदान को सम्मान देने का है, बल्कि उनके व्यक्तित्व की महानता को एक स्थायी श्रद्धांजलि भी है।
राजस्थान और मनमोहन सिंह का गहरा रिश्ता
डॉ. मनमोहन सिंह का राजस्थान से गहरा नाता रहा है। वे 2019 में राजस्थान से राज्यसभा के सांसद चुने गए। राजनीति की उनकी अंतिम पारी भी इसी राज्य से जुड़ी रही। जयपुर के विकास अध्ययन संस्थान से लेकर राज्यसभा तक, राजस्थान की भूमि पर उनकी गहरी छाप है।
एक विरासत जो कभी खत्म नहीं होगी
ये कहानी केवल एक चैम्बर की नहीं, बल्कि उस विरासत की है जिसे डॉ. मनमोहन सिंह ने सादगी, मेहनत और निस्वार्थ सेवा से बनाया। ये चैम्बर आज एक मंदिर जैसा है, जो आने वाले समय में उनके आदर्शों को जीवित रखेगा।