The Exorcist: 52 साल पुरानी फिल्म, लेकिन डर ऐसा कि आज भी थर-थर कांप उठती है रूह
The Exorcist True Story: 1973 में रिलीज हुई हॉलीवुड की क्लासिक हॉरर फिल्म The Exorcist आज भी लोगों को रूह तक हिला देती है। सच्ची घटना से प्रेरित ये फिल्म, डर और भावनाओं का ऐसा संगम है जो आपको सांसें रोकने पर मजबूर कर देगा।

जब हॉरर फिल्मों की बात होती है, तो एक नाम हर सच्चे डर प्रेमी की जुबान पर ज़रूर आता है The Exorcist. 1973 में रिलीज हुई यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं, एक अनुभव है जो आज 52 साल बाद भी दर्शकों को अंदर तक हिला देता है।
रीगन की चीखें और मां की बेबसी
कहानी की शुरुआत एक 12 साल की मासूम बच्ची ‘रीगन मैकनील’ से होती है, जो अपनी मां क्रिस के साथ वॉशिंगटन डीसी में रहती है। क्रिस एक अभिनेत्री है और अकेले अपनी बेटी की परवरिश कर रही है। सब कुछ सामान्य है, जब तक कि रीगन में कुछ अजीब और डरावने बदलाव नज़र आने लगते हैं पलंग के ऊपर हवा में उड़ना, अजीब आवाज़ों में बोलना और हिंसक व्यवहार।
जब साइंस हार गया, तो विश्वास ने रास्ता दिखाया
क्रिस पहले डॉक्टरों की शरण लेती है, लेकिन विज्ञान भी रीगन की स्थिति को नहीं समझ पाता। यही वो पल होता है जब वो मजबूरी में चर्च और धर्म की ओर रुख करती है। फादर कर्रास, जो खुद आस्था की जंग लड़ रहे हैं, रीगन से मिलते हैं और महसूस करते हैं कि ये मामला साधारण नहीं है। यहां से शुरू होता है सबसे भयावह एक्सॉरिस्म का सफर।
फादर मेरिन की एंट्री और डर की पराकाष्ठा
फिल्म में अनुभवी एक्सॉर्सिस्ट फादर मेरिन की एंट्री कहानी में गहराई और डर दोनों को बढ़ा देती है। रीगन को बचाने के लिए दोनों फादर मिलकर जो एक्सॉरिस्म प्रक्रिया शुरू करते हैं, वो दर्शकों के लिए मानसिक रूप से बेहद झकझोर देने वाला अनुभव बन जाती है।
डर के पीछे भावनाओं की परतें
The Exorcist केवल डराने वाली फिल्म नहीं है, यह एक मां के संघर्ष, बलिदान और विश्वास की कहानी भी है। क्रिस की आंखों में अपनी बेटी के लिए जो डर और ममता है, वो दर्शकों को भावुक कर देता है। वहीं फादर कर्रास का आत्मबलिदान फिल्म को आध्यात्मिक गहराई देता है।
क्यों आज भी है प्रासंगिक?
52 साल बाद भी यह फिल्म इसलिए याद की जाती है क्योंकि इसने हॉरर को केवल डर तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें मानवता, आस्था और रिश्तों का गहरा स्पर्श जोड़ दिया। यह वही फिल्म है जिसने हॉरर सिनेमा की परिभाषा ही बदल दी।