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रेगिस्तान से पेरिस तक, जानें कौन हैं पद्म श्री से सम्मानित Batool Begum, 55 देशों में छोड़ी अपनी छाप

Batool Begum : महज 8 साल की उम्र में ठाकुरजी के मंदिर में भजन गाकर बतूल बेगम ने अपने संगीत की यात्रा शुरू की। हाशिए पर खड़े मिरासी समुदाय से आने वाली बतूल का बचपन गरीबी और चुनौतियों से भरा था।

रेगिस्तान से पेरिस तक, जानें कौन हैं पद्म श्री से सम्मानित Batool Begum, 55 देशों में छोड़ी अपनी छाप

Batool Begum : नागौर जिले के छोटे से गांव केराप की मिट्टी में पली-बढ़ी बतूल बेगम ने बचपन में कभी नहीं सोचा था कि उनका संगीत उन्हें एक दिन दुनिया के सबसे बड़े मंचों तक पहुंचाएगा। बचपन की कठिनाइयों, समाज की रूढ़ियों और आर्थिक अभावों को पीछे छोड़ते हुए, बतूल बेगम ने न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि भारतीय लोक संगीत को वैश्विक मंच पर गौरवान्वित किया।

8 साल की उम्र में शुरू हुई संगीत यात्रा
महज 8 साल की उम्र में ठाकुरजी के मंदिर में भजन गाकर बतूल बेगम ने अपने संगीत की यात्रा शुरू की। हाशिए पर खड़े मिरासी समुदाय से आने वाली बतूल का बचपन गरीबी और चुनौतियों से भरा था। पांचवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ने के बाद, उन्होंने संगीत को अपने जीवन का आधार बनाया।

संगीत का जुनून और पारिवारिक सहयोग
शादी के बाद भी कठिन परिस्थितियों में बतूल ने अपना संगीत जारी रखा। उनके पति फिरोज खान, जो रोडवेज में कंडक्टर थे, ने बतूल के सपनों को पंख दिए। खेती और मजदूरी के बावजूद, संगीत के प्रति उनकी लगन ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया।

लोक संगीत को दिया अंतरराष्ट्रीय मंच
मांड और फाग गायकी की अनूठी शैली ने बतूल को 55 से अधिक देशों तक पहुंचाया। पेरिस के प्रतिष्ठित टाउन हॉल में प्रस्तुति देने वाली राजस्थान की पहली महिला लोक गायिका बनने का गौरव भी उनके नाम है। उनकी गायकी न केवल कला है बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी है।

सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश
बतूल बेगम ने हिंदू भजनों और मुस्लिम मांड के जरिए सामाजिक एकता का संदेश दिया। उनका मानना है कि संगीत पूजा की तरह है, जो आत्मा को ऊर्जा और शांति प्रदान करता है। बिना माइक और केवल तबला-हारमोनियम के साथ उनकी प्रस्तुतियां दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

संघर्ष से सम्मान तक
संघर्षों के बीच उभरकर आई बतूल बेगम को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले। 2022 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फ्रांस और ट्यूनेशिया की सरकारों ने भी उन्हें विशेष तौर पर सम्मानित किया। हाल ही में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया, जो उनके योगदान का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है।

संगीत के प्रति समर्पण की प्रेरणा
बतूल बेगम की कहानी केवल सफलता की नहीं, बल्कि संघर्ष और समर्पण की प्रेरणा है। उनकी यात्रा हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है, जो कठिनाइयों से जूझते हुए अपने सपनों को पूरा करना चाहता है। बतूल बेगम आज लोक संगीत की धरोहर को सहेजने और सांस्कृतिक पुल बनाने की मिसाल हैं।