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जातिगत जनगणना से मिलेगा 2028 का किंगमेकर ! गहलोत, राजे या पायलट कौन मारेगा बाजी ? जानें एक क्लिक में

केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना के फैसले के बाद प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया है। राजनीतिक एक्सपर्ट्स इसे 2028 विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। ऐसे में जानें राजे, गहलोत या फिर पायलट किसे इससे फायदा मिल सकता है। 

जातिगत जनगणना से मिलेगा 2028 का किंगमेकर ! गहलोत, राजे या पायलट कौन मारेगा बाजी ? जानें एक क्लिक में

जयपुर। सबसे से केंद्र की मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है। तबसे इसपर सियासत शुरू हो गई है। पक्ष इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक बता रहे है तो विपक्ष इसे राहुल गांधी की जीत। हालांकि इसी बीच जातिगत जनगणना का मुद्दा राजस्थान पहुंचा चुका है। फिलहाल जातिगत जनणगना के शुरू होने और उसके आंकड़े आने में लंबा वक्त लगेगा लेकिन प्रदेश में ये मुद्दे कांग्रेस-बीजेपी दोनों के लिए अहम है। 2028 के विधानसभ चुनावों में कौन किसके से साथ जाएगा और कौन सा नेता किस पर भारी पड़ेगा। इस पर आज चर्चा करेंगे। 

राजस्थान के बीते कई चुनाव में देखा गया है, जातियां गेम पलटने का माद्दा रखती हैं। जबकि नेता भी जाति या समाज का नाम जोड़कर खुद को एक जनप्रतिनिधि बताते हैं। यानी जो जिस जात का नेता है, जितना बड़ा कद होगा। पार्टी में भी उसकी उतनी ही पकड़ होगी। खैर, अभी के लिए सूबे में बीजेपी की सरकार है। सीएम भजनलाल शर्मा है और उनके कैबिनेट में 24 मंत्री है। खैर, हर नेता का अपना अलग वोट बैंक है। जैसे किरोड़ी लाल मीणा मीणा समाज के नेता मानें जाते है। सचिन पायलट गुर्जर समाज तो हनुमान बेनीवाल और गोविंद सिंह डोटासरा जाट, टीकाराम जूली दलित तो वसुंधरा राजे की गिनती राजपूत समाज की नेता के तौर पर होती है। जबकि महारानी खुद दावा करती है वह गुर्जरों की बहू हैं तो वह गुर्जर वोटों को साधने की कोशिश भी करती हैं। 

जातिगत जनगणना ने प्रदेश के किस नेता को फायदा

अगर बात पूर्व सीएम अशोक गहलोत की करें तो 36 कौमों में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। वैसे तो वह खुद को विशेष जाति समाज की छवि से खुद को दूर रखते हैं लेकिन बीजेपी ने जब भी गहलोत के खिलाफ किसी भी नेता को खड़ा किया है। जीत गहलोत की हुई है। यहां तक तीन बार कैबिनेट की बैठक में भी मुख्यमंत्री के तौर पर उनके ही नाम पर मुहर लगी। ऐसे में अगर आने वाले विधानसभा चुनाव में गहलोत क्या असर दिखाएंगे इस पर सभी की निगाहें हैं। 

वहीं, दूसरी ओर बात अगर वसुंधरा राजे की करें तो उन्होंने 2023 और 2013 में सत्ता की कमान संभाली है। वह खुद को जाटों की बहू बाती है। यदि जनगणना में ओबीसी समाज को लाभ मिलता है। तो आने वाले चुनाव में राजे फिर से जाट वोटों को साधने का प्रयास कर सकती हैं। यदि, जनगणना में जाट और स्वर्ण वोटों का ग्राफ बढ़ता है तो बीजेपी इसे साधने की जिम्मेदारी राजे को सौंप सकती है। 

2018 के चुनावों में सचिन पायलट सीएम पद के प्रबल दावेदार थे लेकिन आलाकमान ने विश्वास गहलोत पर जताया। पूरे प्रदेश में पायलट गुर्जर समाज के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। कांग्रेस को जिताने में कई सीटों पर गुर्जर मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में जब पायलट को 2018 में सीएम नहीं बनाया गया तो 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। कहा तो ये भी जाता है 2023 के चुनावों में भी पायलट को चेहरा ना पाए जाने से कही न कही गुर्जर समाज नाराज था। हालांकि 2024 के चुनाव से पहले कांग्रेस ने पायलट को बड़ा पद सौंपा तो 10 सालों का सूखा खत्म करते हुए कांग्रेस ने बीजेपी का विजयी रथ रोका चार गुर्जर बहुल्य क्षेत्र में जीत हासिल की।