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इमरजेंसी पर शशि थरूर का लेख: "आज का भारत, 1975 का भारत नहीं है"

"सत्तावाद, डर और दमन की तरफ धकेल दिया गया देश"

"मानवाधिकार हनन पर दुनिया मौन रही"

इमरजेंसी पर शशि थरूर का लेख: "आज का भारत, 1975 का भारत नहीं है"

इमरजेंसी पर शशि थरूर का लेख: "आज का भारत, 1975 का भारत नहीं है"

नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 1975 की आपातकाल को लेकर एक सख्त टिप्पणी करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के उस फैसले की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि आपातकाल एक गंभीर चेतावनी है कि आजादी कैसे धीरे-धीरे छीनी जाती है, और लोकतंत्र समर्थकों को सतर्क रहना चाहिए।

प्रोजेक्ट सिंडीकेट में प्रकाशित अपने लेख में थरूर ने लिखा—
"पचास साल पहले लगाए गए आपातकाल ने दिखाया कि कैसे नागरिक आज़ादी को धीरे-धीरे छीना जा सकता है — भले मकसदों के नाम पर, धीरे-धीरे, और शुरुआत में बिना किसी शोर के।"

"सत्तावाद, डर और दमन की तरफ धकेल दिया गया देश"
शशि थरूर ने लेख में लिखा कि इंदिरा गांधी के सत्तावादी फैसले ने देश को डर और दमन के माहौल में झोंक दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल को आंतरिक अव्यवस्था और बाहरी खतरों से निपटने का औचित्य बताया, लेकिन इसका असल असर नागरिक अधिकारों पर पड़ा।
"आपातकाल के दौरान न सिर्फ विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया, बल्कि प्रेस की आजादी भी कुचल दी गई और आम नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए।"

"मानवाधिकार हनन पर दुनिया मौन रही"
थरूर ने लिखा कि यह चिंता की बात है कि जब भारत में मानवाधिकारों का खुलेआम हनन हुआ, तब दुनिया चुप रही।
"यह घटना बताती है कि लोकतंत्र को बचाने के लिए केवल संविधान नहीं, बल्कि सजग नागरिक भी जरूरी हैं।"

"आज का भारत 1975 का भारत नहीं"
लेख के अंत में थरूर ने यह भी जोड़ा कि आज का भारत कहीं अधिक सशक्त, सजग और वैश्विक नजरिए वाला है। लेकिन खतरे अब भी हैं — और यही वजह है कि आज भी लोकतंत्र की निगरानी जरूरी है।

पृष्ठभूमि: 1975 की इमरजेंसी
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। यह दौर मार्च 1977 तक चला, जिसमें—

प्रेस की आज़ादी पर रोक लगी

हजारों विपक्षी नेताओं को जेल में बंद किया गया

संविधान के मौलिक अधिकारों को निलंबित किया गया