सिद्धबाबा की साधना से जागी कुंडलिनी शक्ति, कनाडा से नेपाल तक गूंज रहा हिमालयन महायोग का अलौकिक प्रभाव!
जगतगुरु महायोगी सिद्धबाबा द्वारा स्थापित हिमालयन सिद्ध महायोग साधना से हजारों साधकों ने स्वचालित कुंडलिनी जागरण का अनुभव किया। जानिए कैसे कनाडा और नेपाल से शुरू हुई यह आध्यात्मिक क्रांति।

आधुनिक जीवन की आपाधापी में जहाँ हर कोई शांति और आनंद की तलाश में है, वहीं जगतगुरु महायोगी सिद्धबाबा की शिक्षाओं ने हजारों लोगों को अपने भीतर की ऊर्जा पहचानने और आत्मिक सुख की अनुभूति कराने का मार्ग दिखाया है।
हिमालयन पशुपत सिद्ध महायोग मेडिटेशन, एक ऐसी प्राचीन साधना पद्धति है जो बिना किसी बाहरी प्रयास के कुंडलिनी शक्ति को स्वतः जाग्रत कर देती है। यह प्रक्रिया आज के समय में दुर्लभ है और केवल कुछ ही हिमालय योगियों द्वारा सिखाई जाती है।
चट्टाराधाम से ओटावा तक फैला आध्यात्मिक संदेश
नेपाल के सुनसरी जिले में स्थित चट्टाराधाम में मुख्य आश्रम और कनाडा के ओटावा में अंतरराष्ट्रीय कार्यालय के माध्यम से, यह संगठन एक नॉन-प्रॉफिट संस्था के रूप में कार्य कर रहा है। 2015 से रजिस्टर्ड यह संस्था, दुनियाभर में योग, ध्यान, प्रशिक्षण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और आध्यात्मिक वार्ताओं के ज़रिए लोगों को आत्म-शांति की ओर अग्रसर कर रही है।
‘बिना प्रयास’ जागती है ऊर्जा
जहाँ पश्चिमी दुनिया में मैनुअल कुंडलिनी जागरण का चलन बढ़ा है, वहीं सिद्धबाबा की साधना स्वचालित जागरण पर आधारित है। इस प्रक्रिया में साधक को प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती — ऊर्जा स्वतः शरीर और मन को शुद्ध करती है, जिससे आत्मिक विकास शुरू होता है। यह साधना केवल ‘ध्यान’ नहीं, बल्कि एक आंतरिक क्रांति है जो प्रेम, शांति और करुणा से ओतप्रोत समाज की नींव रखती है।
जाग्रत समाज, सार्वभौमिक प्रेम की ओर यात्रा
सिद्धबाबा की शिक्षाएं न केवल आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि एक ऐसी सामाजिक संरचना की ओर इशारा करती हैं जहाँ हर व्यक्ति अपने "सर्वोच्च रूप" की खोज करता है। संस्था का उद्देश्य है। योग और ध्यान को आसान, सुलभ और उद्देश्यपूर्ण बनाना है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों को जोड़ना है।